उत्तराखंड में विलुप्त होती जा रही पहाड़ी संस्कृति-परंपरा,देखिए पहाड़ की संस्कृति की झलकियां
नरेन्द्र राठौर
रुद्रपुर। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में कुछ कुछ जगहों पर मात्र शक्ति के द्बारा इस परंपरा व रीति रिवाज को उजागर करने में अभी अपना योगदान दिया है।
आज से पहले साठ सतर साल पहले हमारे पहाड़ों में शादी विवाह व अन्य शुभ कार्य होते थे तो उस समय हर परिवार व हर गाव की महिलाओं के द्धारा पंद्रह 20दिन उस परिवार को सहयोग मिलता था जिस परिवार में शादी विवाह व अन्य शुभ कार्य या कोई उत्सव होता था।
सबसे पहले हमारी पहाड़ी महिला ओखल में कुटाई करती थी चाहे व धान हो चाहे व हल्दी, धनिया मिर्च आदि उसके बाद गांव की महिला महिलाओं के द्बारा जंगल से लकड़ी लाने की प्रथा भी थी ताकि शादी व्याह व शुभ कार्य में खाने बनाने की।
उसके बाद जिस घर में शादी विवाह व शुभ कार्य होता उस घर पर सभी महिलाएं अपने अपने स्तर से उस शुभ कार्य के। लिए कोई ओखिल कुटाई व कोई खाने पीने की सफाई में लगी रहती थी।
आज धीरे धीरे इन परम्परा व रीति रिवाज लुप्त हो रहे हैं।
प्रताप सिंह नेगी समाजिक कार्यकर्ता ने बताया उत्तराखंड की नारी सब में भारी उतराखड राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों से लगातार युवाओं का पलायन होने के बाबजूद भी आज पर्वतीय क्षेत्रों की महिलाओं के द्धारा अपनी मातृभूमि की संस्कृति व परंपरा को उजागर करने में अपना योगदान दिया। उत्तराखंड राज्य की मात्र शक्ति अपने घर परिवार के कामकाज के साथ साथ अपनी मातृभूमि की संस्कृति व रीति-रिवाज परंपरा को मध्य नजर रखते हुए हर शुभ कार्य में हाथ बडाती है । उसके बाद मनोरंजन भी करती है। इसलिए उत्तराखंड की नारी का पूरे देश में अलग ही पहचान है।