कुमाऊं में बर्ष में तीन बार बनाया जाता है हरेला पर्व।हरेला की गुड़ाई कर कर विधि विधान से करते हैं पूजा।सावन के महीने को मानते हैं शिव का महीना
नरेन्द्र राठौर
रुद्रपुर (खबर धमाका)। -उतराखड के कुमाऊं मंडल में हरेला त्यौहार साल में तीन बार मनाया जाता है चैत्र मास के पहले दिन बोया जाता है दसमी को काटा जाता है ये हरेला त्यौहार गर्मी के मौसम की जानकारी का संदेश के लिए बताया जाता है दुसरा हरेला अक्टूबर की पहली नवरात्रि में बोया जाता है दसमी को काटा जाता है।ये तीनों हरेला त्यौहार का सबसे महत्वपूर्ण हरेला जुलाई के महीने का हरेला माना जाता है। उत्तराखंड देव भूमि में शिब जी का वास माना जाता है सावन व जुलाई का महीना शिव महादेव का प्रिय महीना मानते हैं।कुछ जगहों में सावन के महीने हरेला त्यौहार को काली मां की तौर पर भी मनाते हैं। प्राचीन काल से ही सावन के महीने में हरेला त्यौहार में पेड़ पौधे व पेड़ पौधों की क़लम करके लगाने की प्रथा चली आ रही है। वर्तमान समय में हरेला त्यौहार में उतराखड के पर्वतीय क्षेत्रों में पौधारोपण रोपण व फलदार वृक्षों को लगाया जाता है। प्राचीन काल से कहावत है सावन में हरेला त्यौहार के समय जो फलदार व छायादार वृक्ष लगाए जाते हैं व काफी अच्छे व फलते पुलते है।
अल्मोड़ा से समाजिक कार्यकर्ता प्रताप सिंह नेगी बताया भैसियाछाना बिकास खंड के मंगलता गांव में हेमा भट्ट हर साल हरेला की गुड़ाई बिधि बिधान से पूजा पाठ करके करती आ रही है। नौवें दिन हरेला की गुड़ाई की जाती दसवें दिन गंगा स्नान करके अपने इष्ट देवी देवताओं के ंनाम लेकर हरेला काटा जाता है। हरेला काटने के साथ साथ हर घर में पकवान बनता है हरेला के पत्ते व पकवान सबसे पहले अपने इष्ट देवी देवताओं को चढ़ाया जाता है उसके बाद गाय को दिया जाता है। उसके बाद परिवार के बड़े बुजुर्गो के द्धारा हरेला त्यौहार पूजा जाता है बड़े बुजुर्ग आशीर्वाद देते हैं। जिरया जागि रया,यौ दिन यौ दिन यौ मास भियटनै रया,दुब जै हुगरी,पाति जै पुंगरिया,एके कि एकास पांच कि पचास है जौ। तुमर सबनक जुवड बचि रौ।दुसरी बात हरेला त्यौहार में हर बहन अपने भाई के सिर पर हरेला चढाती है बहिन अपने भाई की लंबी आयु के भगवान से दुवाईये करती है भाई हरेला त्यौहार में अपनी बहिन को स्वेच्छा अनुसार दक्षिणा देते हैं ये हरेला त्यौहार की परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है। प्रताप सिंह नेगी का कहना उतराखड प्रथक राज्य बनने के बाद उतराखड से पलायन होने के कारण अन्य त्योहारों की तरह हरेला पारम्परिक त्यौहार में भी धीरे-धीरे गिरावट आ रही है।