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उत्तराखंड

पायलिया तेरी छमछम बजेगी। गीत पर बागेश्वर की लक्ष्मी ने मचाया धमाल। आर्थिक तंगी के बाबजूद पहाड़ी लोकनृत्य में बना रही पहचान।

नरेन्द्र राठौर 

बागेश्वर -जिले की कुंवारी गांव की 25 साल की लक्ष्मी दानू ने अपनी गरीब व साधारण परिवार बचपन बिताया।बचपन में ही पिताजी का देहांत हो गया लेकिन लक्ष्मी दानू ने अपनी साधारण परिवार में रहकर बचपन से ही उत्तराखंड की संस्कृति व परंपरा को मध्य नजर रखते हुए उतराखड लोकनृत्य में हमेशा ध्यान दिया।
यहां तक कि अपने कारोबार व अपने दो बच्चों के साथ रहकर इसने समय मिलने के बाद उतराखड की संस्कृति के लिए कुमाऊं व गढ़वाल के लोकनृत्य के लिए छोटी छोटी विडियो बनाकर फेसबुक व इंस्टाग्राम में डालना शुरू किया।

प्रताप सिंह नेगी समाजिक कार्यकर्ता ने बताया लक्ष्मी दानू ने कभी अपने लोकनृत्य केलिए हार नहीं मानी खाली फेसबुक व इंस्टाग्राम में अपनी लोकनृत्य की विडियो डालती रही। लक्ष्मी गरीब परिवार की बेटी थी उसे उत्तराखंड सांस्कृतिक मंच में लाने वाला कोई नहीं । नेगी ने बताया लक्ष्मी दानू की रात दिन की मेहनत रंग ला .रही है। अभी वर्तमान में लक्ष्मी दानू ने दिल्ली एनसीआर में उत्तराखंड सांस्कृतिक कार्यक्रम में अपना प्रतिभाग करके अच्छा लोकनृत्य करके बिना डांस क्लास व बिना किसी के सपोर्ट से अपनी पहचान बनाई। किसी भी काम को करने में थोड़ा दिक्कत आती लेकिन लक्ष्मी दानू की तरह हिम्मत रखनी चाहिए।

पहाड़ी संस्कृति के लोकनृत्य में धमाल मचाती लक्ष्मी दानू

लक्ष्मी ने अपने घर परिवार को देखते हुए उतराखड लोकनृत्य कला को भी महत्व दिया।इसी महत्व के कारण आज लक्ष्मी दानू ने दिल्ली एनसीआर में चार पांच प्रोग्राम में अपनी लोकनृत्य की एक पहचान बनाई। उत्तराखंड में लक्ष्मी दानू की तरह और भी बहन बेटी है जिनको उत्तराखंड की लोक संस्कृति की गाथा व उतराखड के कल्चर के बारे में पता है। लेकिन उन्हें सामने लाने के लिए कोई भी सहयोग नहीं करता।

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