तो सीएमओ कार्यलय मे अस्पतालों के रजिस्ट्रेशन में होता बड़ा खेल! घोटें-छोटे घर, दुकानों में भी अस्पताल संचालन का मिला है लाइसेंस।मानकों की होती है अनदेखी। प्रीत बिहार में बच्चे की मौत के बाद उठा सवाल
नरेन्द्र राठौर
रुद्रपुर (खबर धमाका)। ऊधमसिंहनगर में निजि अस्पताल, क्लीनिक,लैव की रजिस्ट्रेशन में बड़ा खेल रहा। मानकों की अनदेखी हो रही है,तो डाक्टरों की डिग्री का भी जांच नहीं की जा रही है। रुद्रपुर के प्रीत बिहार में। निजी अस्पताल बच्चे की मौत के बाद समाने आयी खबरें से ऐसे सवाल उठने लगे हैं।
स्वस्थ्य विभाग से जुड़े सूत्रों की मानें तो अस्पताल, मेडिकल, क्लीनिक और लैव के रजिस्ट्रेशन में संचालक, डाक्टर और बिल्डिंग (भवन) तीनों का सत्यापन जरुरी है। भवन रजिस्ट्री की जमीन और उसका नक्शा पास होना चाहिए। अस्पताल में किस किस बीमारी का इजाल होगा,डाक्टर कौन है उसकी डिग्री क्या है, डिग्री फर्जी तो नहीं है,इसका सत्यापन भी जरूरी है।भवन की अग्निशमन विभाग से एनओसी भी लेनी होती। भवन यदि किराए पर लिया है तो उसका किरायनामा और भवन का डीडीए से नक्शा पास होना जरूरी है।
लेकिन ऊधमसिंहनगर में यह मानक कागजी साबित हो रहे हैं। रुद्रपुर के प्रीत बिहार में जिस न्यू मेडीस्टार हास्पिटल में 06 दिन के बच्चे की मौत हुई है। उसके रजिस्ट्रेशन को लेकर खुद विभाग के अफसर हैरान हैं। पहले तो यह अस्पताल का भवन सीलिंग की जमीन पर हाईकोर्ट की रोक के बाद बना था,उसका नक्शा स्वीकृत नहीं था, जिस भवन का किरायनाम लगाया गया था,वह जर्जर भवन है, फिर उसकी अग्निशमन विभाग से एनओसी किसने दी, या फिर एनओसी के बैगर रजिस्ट्रेशन कैसे हो गया, विभाग ने यदि सत्यापन किया था तो उसे अस्पताल की बिल्डिंग में अस्पताल चलाने की अनुमति कैसे दे दी। जिस डाक्टर का रजिस्ट्रेशन में नाम लिया गया है,वह तो कभी अस्पताल आया ही नहीं। मतलब साफ है की स्वस्थ्य विभाग ने मानकों को ताख में रखकर मौत का अस्पताल चलाने की अनुमति दी थी,ऐसा क्यों किया गया,यह जांच का बिषय है। बताए जाता है कि जिले में बड़े पैमाने पर छोटे छोटे मकानों, दुकानों में अस्पताल संचालन की अनुमति स्वस्थ्य विभाग ने दे रखी रही है,जहां पर मरीजों को जानवरों की तरह रखा जाता है,तो डिग्रीधारी डाक्टर सिर्फ रजिस्ट्रेशन के कागज़ों पर ही सीमित है यही हाल लैव, क्लीनिकों का भी है।
सूत्रों की मानें तो स्वस्थ्य विभाग में अस्पतालों,लैव, क्लीनिक रजिस्ट्रेशन में पिछले दो साल में बड़ा खेल हुआ है। विभाग में रजिस्ट्रेशन की फीस तय है, जिसके बाद सभी मानकों को ताक में रख दिया जाता है। स्वस्थ्य विभाग की इसी लापरवाही से मौत के अस्पताल खुलेआम संचालित हो रहे हैं। जिसमें जांच की जरूरत है।