मोबाइल पर चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना और डाऊनलोड करना अपराध सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला,शीर्ष कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट का फैसला किया रद्द
नरेन्द्र राठौर (खबर धमाका)। सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला देते हुए सोमवार को कहा कि चाल पोर्नोग्राफी (असतील सामडी) देखना और डाउनलोड करना पॉक्सो कानून तथा सूचना प्रौद्योगिकी कानून के तहत अपराध है। न्यायालय ने सुझाव दिया कि संसद को कानून में संशोधन कर बाल पोनोंग्राफी शब्द को बदलकर ‘बच्चों के साथ यौन शोषण और अश्लील सामग्री करने पर विचार करना चाहिए। इसने अदालतों से बाल पोनाँग्राफी शब्द का इस्तेमाल न करने के लिए कहा।प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़,
न्यायमूर्ति जे यी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिक्षा की पीठ ने मद्रास सईकोर्ट के उस आदेश को सोमवार को रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि बाल पोनोंग्राहकी देखना और डाउनलोड करना बाल यौन अपराध संरक्षण (पॉक्सो) कानून तथा सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) कानून के तहत अपराध नहीं है। पीठ ने बाप्त पौनीग्राफी और उसके कानूनी परिणामों पर कुछ विला-निर्देश भी जारी किए। इसने कहा, हमने संसद को
सुझाव दिया है कि वह पॉक्सो में संशोधन करें ताकि बाल पोर्नोग्राफी की परिभाषा बदलकर ‘बच्चों के साथ यौन शोषण और अशलील सामाग्री किया जा सके। हमने सुझाव दिया है कि एक अध्यादेश लाया जा सकता है।’ शीर्ष अदालत ने उस याचिका पर अपना फैसला दिया जिसमें मद्रास हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी।
हाईकोर्ट ने 11 जनवरी को 28 वर्षीय एक व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक
कार्यवाही रद्द कर दी थी, जिस पर अपने मोबाइल फोन पर बच्चों से जुड़ी अश्लील सामग्री डाउनलोड करने का आरोप था। शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाते हुए मामले में यह कहते हुए आपराधिक कार्यवाही बहाल की कि हाईकोर्ट ने इसे रद्द करने में गलती की। पीठ ने कहा कि सत्र अदालत को अब नाए सिरे से मामले पर सुनवाई करनी होगी। इससे पहले, मद्रास हाईकोर्ट के आदेश को गलत बताते हुए सुप्रीम कोर्ट इसके खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करने के लिए राजी हो गया था।
हाईकोर्ट ने कहा था कि बाल र्पौनोंग्राफी देखना और महज डाउनलोड करना पॉक्सरों कानून तथा आईटी कानून के तहत अपराध नहीं है। हाईकोर्ट ने यह भी कहा था कि आजकल बच्चे पॉनोंग्राफी देखने की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं और समाज को इतना परिपक्व होना चाहिए कि यह उन्हें सजा देने के बजाय उन्हें शिक्षित करें। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता संगठनों की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता एसएस फुल्का की दलीलों पर गौर किया कि हाईकोर्ट का फैसला इस संबंध में कानून के विरोधाभासी है।